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रहस्यों से भरी उत्तराखंड की ‘रूपकुंड’ झील में पहली बार दिखा पत्थर-मलबा, 8वीं सदी की हैं मानव अस्थियां


प्रकृति प्रेमियों के लिए यह खबर निराश करने वाली है। जलवायु परिवर्तन का असर हिमालय में साढ़े 16 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड की सेहत पर भी पड़ा है। आस्था, इतिहास, पुरातात्विक रहस्यों का यह सरोवर इन दिनों पूरी तरह सूख गया है।

कोई इसे आस्था से जोड़ रहा है तो कोई इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर बता रहा है। रूपकुंड चमोली जिले में स्थित एक हिम झील है। यह स्थान पूरी तरह से निर्जन है। मान्यताओं के अनुसार कभी मां नन्दा (गौरा) ने हिमालय के इस सुंदर सरोवर में अपना रूप देखा था।

इसीलिए इसे रूपकुंड नाम मिला। उत्तराखंड में लोक आस्था के प्रमुख पर्व राजजात का यह प्रमुख केंद्र है। प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित होने वाली प्रसिद्ध नंदा राजजात यात्रा का रूपकुंड एक प्रमुख पड़ाव है। यात्रा के दौरान यहां विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।

बदरीनाथ वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी सर्वेश कुमार दुबे ने रूपकुंड के सूखने की पुष्टि की है। कहा कि इस वर्ष हुई अतिवृष्टि से रूपकुंड के ऊपरी दो क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ है। इससे मिट्टी और मलबा रूपकुंड में भर गया है। ऐसा पिछले कुछ वर्षों से लगातार हो रहा है।

बारिश का बदलता पैटर्न हो सकता है कारण

वाडिया इंस्टीट्यूट से रिटायर और प्रसिद्ध भू-विज्ञान डॉ. बीपी डोभाल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बदलता बारिश का पैटर्न इसका एक बड़ा कारण हो सकता है। यह ग्लेशियर के बाद शुरू होने वाला बुग्याल क्षेत्र है। जहां रिमझिम बारिश होती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से बारिश का पैटर्न बदला है।

आठवीं सदी की हैं मानव अस्थियां

इस सरोवर के चारों ओर हजारों की संख्या में बिखरी मानव अस्थियां, पुराने जूते, बाल रहस्य और कौतूहता का विषय हैं। गढ़वाल विवि के पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. राकेश भट्ट बताते हैं, सबसे नवीन शोध नेशनल जियोग्राफिक ने किया। शोध के अनुसार यहां बिखरी मानव अस्थियां आठवीं वीं सदी की हैं।



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